चीनी मिलों और एथेनॉल डिस्टलरी के लिए कमाई का एक और रास्ता खुल गया है। चीनी मिलें शीरे से प्राप्त पोटाश को फर्टिलाइजर कंपनियों को बेचकर कमाई करेंगी। इसके लिए 4,263 रुपये प्रति टन का भाव तय किया है।
खाद्य मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, इस साल चीनी मिलें मोलासेज (शीरे) से प्राप्त पोटेशियम यानी पीडीएम को 4,263 रुपये प्रति टन के भाव पर उर्वरक कंपनियों को बेचेंगी। चीनी मिलों और फर्टिलाइजर कंपनियों के बीच पोटाश बिक्री के बीच आपसी सहमति से यह रेट तय हुआ है। पोटाश बनाने वाली चीनी मिलें न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी स्कीम (एनबीएस) के तहत 345 रुपये प्रति टन की दर से उर्वरक सब्सिडी भी प्राप्त कर सकती हैं।
एथेनॉल उत्पादन के दौरान अपशिष्ट रसायनों को बॉयलर में जलाया जाता है, जिससे राख निकलती है। पोटाश युक्त इस राख से 14.5 प्रतिशत पोटाश वाले पीडीएम का उत्पादन किया जाता है। इसका उपयोग किसानों द्वारा म्यूरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी) के विकल्प के रूप में किया जा सकता है।
लंबे समय से फर्टिलाइजर कंपनियों और चीनी मिलों के बीच पोटाश के दाम को लेकर सहमति बनाने के प्रयास किए जा रहे थे। केंद्र सरकार के खाद्य मंत्रालय की पहल पर अब शीरे से बने पोटाश का दाम तय हो गया है। इससे चीनी मिलें और उर्वरक कंपनियां पोटाश की खरीद-बिक्री के लिए दीर्घकालिक सौदे कर सकेंगी।
भारत उर्वरकों के मामले में आयात पर निर्भर है। अगर देश में चीनी मिलों के जरिए पोटाश की उपलब्धता बढ़ती है तो इससे ना सिर्फ उर्वरकों के आयात पर निर्भरता घटेगी, बल्कि देश में पोटाश की उपलब्धता बढ़ेगी। वर्तमान में चीनी मिलें लगभग 5 लाख टन पोटाश राख बेचती हैं, जबकि इसके उत्पादन की क्षमता 10-12 लाख टन तक पहुंच सकती है। इससे चीनी मिलों की कमाई बढ़गी और उन्हें किसानों को समय पर भुगतान करने में आसानी होगी।
लेकिन सवाल यह भी है कि चीनी मिलें गन्ने से निर्मित विभिन्न उत्पादों से जो कमाई कर रही हैं, क्या उसका लाभ किसानों तक भी पहुंच रहा है? चीनी के अलावा एथेनॉल, पोटाश और बायो एनर्जी शुगर इंडस्ट्री की आय के साधन हैं।