जलवायु परिवर्तन में सबसे ज्यादा भूमिका निभाने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करना जरूरी है। इसकी जगह आधुनिक और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने की जरूरत है। भारत ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के रूप में जैव ईंधन (bio-fuel) के उपयोग को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है। आधुनिक और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने में देश में कई कंपनियां काम कर रही हैं। उन्हीं में से एक है तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित कंपनी बायोफ्यूल (Buyofuel)। यह भारत की पहली कंपनी है जो बायो-फ्यूल (जैव ईंधन) की ऑनलाइन मार्केटिंग करती है। इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से न सिर्फ खरीददार जुड़े हैं बल्कि जैव ईंधन बनाने वाले निर्माता और दूसरे विक्रेता भी जुड़े हुए हैं।
बायोफ्यूल के सीईओ किशन करुणाकरन रूरल वॉयस से बातचीत में कहते हैं, “बायोफ्यूल भारत का पहला ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जहां हर तरह के जैव ईंधन की खरीद बिक्री होती है। चाहे वह तरल जैव ईंधन हो, ठोस हो या फिर गैसीय जैव ईंधन। कच्चे माल के उत्पादकों से लेकर निर्माताओं और जैव ईंधन उपभोक्ताओं तक हर कोई हमारे ऑनलाइन मार्केटप्लेस से मोबाइल ऐप से भी जुड़ सकते हैं। उत्सर्जन मुक्त स्वच्छ वातावरण को वापस लाने के लिए हरित ईंधन नेटवर्क की पहुंच को मजबूत करना हमारा लक्ष्य है। जैव ईंधन नवीकरणीय बायोमास जैसे पौधों की सामग्री (लकड़ी के छिलके, टुकड़े, बुरादा आदि), कृषि अपशिष्ट (पराली, धान की भूसी, कॉफी एवं काजू के छिलके आदि) एवं पशु अपशिष्ट (गोबर, वसा) से प्राप्त ईंधन हैं। इन्हें जीवाश्म ईंधन का एक स्वच्छ विकल्प माना जाता है क्योंकि ये कम ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करते हैं।”
ठोस जैव ईंधन गैर-जीवाश्म कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त होते हैं जिनका उपयोग फैक्ट्रियों में और बिजली उत्पादन के लिए ईंधन के रूप में किया जा सकता है। आमतौर पर भारत में औद्योगिक बॉयलर कोयले के विकल्प के रूप में उनका उपयोग करते हैं। जबकि तरल जैव ईंधन वनस्पति तेल, पशु वसा और अपशिष्ट से उत्पादित होते हैं। मुख्य रूप से परिवहन, बिजली उत्पादन और ताप के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। इस्तेमाल किया हुआ खाद्य तेल (यूसीओ) भी तरल जैव ईंधन के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है। गैसीय जैव ईंधन अक्षय ऊर्जा का एक रूप है जो जैविक सामग्री जैसे कृषि अपशिष्ट, लकड़ी और अन्य बायोडिग्रेडेबल सामग्री से उत्पन्न होते हैं। बायो-सीएनजी और ग्रीन हाइड्रोजन गैसीय जैव ईंधन हैं। ये पारंपरिक ईंधन की तुलना में बहुत कम उत्सर्जन और प्रदूषण पैदा करते हैं।
यह कंपनी कैसे काम करती है इस बारे में करुणाकरन बताते हैं, “विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट से जैव ईंधन बनाने वाले निर्माताओं की हम मदद करते हैं और उनके लिए ज्यादा से ज्यादा अपशिष्ट इकट्ठा करने वाले एग्रीगेटर बना रहे हैं। इसी तरह हम बड़े उद्योगों जैसे बड़े ईंधन उपभोक्ताओं की मदद करते हैं। उन्हें जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ विकल्प की ओर ले जाने में हम उनकी सहायता करते हैं। जैव ईंधन निर्माताओं से हम उन्हें सीधे जोड़ते हैं। इस तरह हम दोतरफा काम करते हैं। एक तरफ जैव ईंधन निर्माताओं के लिए हम अपशिष्ट की उपलब्धता बढ़ाते हैं और दूसरी तरफ ईंधन उपभोक्ताओं को जैव ईंधन उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। हम जैव ईंधन का मार्केट बनाने और उसका प्रबंधन दोनों कर रहे हैं। उनके लिए इसकी खरीद और बिक्री दोनों करते हैं।”
करुणाकरन ने अपने बिजनेस मॉडल के बारे में बताया कि इस क्षेत्र में जितनी भी कंपनियां काम कर रही हैं उनसे हमारा मॉडल बिल्कुल अलग है। ऑनलाइन मार्केट में अभी हमारा कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है। जो प्राइमरी प्लेयर्स हैं (एग्रीगेटर्स) वे असंगठित क्षेत्र के हैं। जबकि सेकेंडरी प्लेयर्स (निर्माता) सब्सक्रिप्शन के आधार पर काम कर रहे हैं और वे सभी तरह के जैव ईंधन कारोबार में नहीं हैं। हमारे प्लेटफॉर्म पर एक ही जगह सभी तरह के जैव ईंधन उपलब्ध हैं और सब्सक्रिप्शन आधारित नहीं है।
उन्होंने कहा कि हम एग्रो प्रोसेसिंग इंडस्ट्री और उन एग्रीगेटर्स के साथ भी मिलकर काम कर रहे हैं जो स्थानीय तौर पर पौधों, फसलों और पशुओं के अपशिष्ट इकट्ठा करते हैं ताकि जैव ईंधन निर्माताओं के लिए कच्चा माल उपलब्ध करवा सकें। उन्होंने बताया कि बायोफ्यूल के बड़े खरीददारों में आदित्य बिड़ला समूह, वेल्सपन, आईटीसी, अल्ट्राटेक, रैमको सीमेंट, पिरामल फार्मास्युटिकल्स, जेएसडब्ल्यू, टीवीएस टायर्स जैसी कंपनियां शामिल हैं।
यह कंपनी अभी तमिलनाडु में काम कर रही है और विस्तार की ओर अग्रसर है। करुणाकरन कहते हैं, “कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली-एनसीआर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में विस्तार की कंपनी की महत्वपूर्ण योजना है। इसके अलावा सभी तरह के जैव ईंधन में काम करने की हमारी योजना है। हम अपने कारोबार का डायवर्सिफिकेशन कर रहे हैं। एग्री वेस्ट, फ्यूल वेस्ट, सॉलि़ड बायोफ्यूल और लिक्विड बायोफ्यूल जैसे बायो-डीजल बायो-एथेनॉल, बायो-सीएनजी यह सब अभी शुरुआती स्तर पर हैं। हम इसके जरिये वॉल्यूम और वैल्यू दोनों बढ़ाने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा हम अपने कारोबार का विस्तार यूरोप में कैसे कर सकते हैं जहां जैव ईंधन क्षेत्र काफी बढ़ रहा है, उस पर काम कर रहे हैं। यूरोप पूरे भारत से अपशिष्ट चाहता है क्योंकि वहां उतना अपशिष्ट पैदा नहीं होता जितनी वहां जरूरत है।”
किशन के मुताबिक, ऑर्गेनिक वेस्ट एक अलग प्रयास है जिस पर कंपनी की निगाह है। कंपनी की योजना किसानों और जैव ईंधन निर्माताओं को मदद करने की है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य जहां पराली किसानों की बड़ी समस्या है वहां कार्बन क्रेडिट मॉडल लंबे समय में उनकी मदद कर सकता है। कंपनी निर्यात की भी योजना बना रही है।
उन्होंने बताया कि पिछले वित्त वर्ष (2022-23) में कंपनी का टर्नओवर करीब 25 करोड़ रुपये रहा है। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में इसके 10 गुना बढ़ने की उम्मीद है। बढ़ती मांग और भारत जैसे बड़े बाजार को देखते हुए हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस वर्ष हमारा कारोबार 200 से 250 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। पिछले साल हमारा वॉल्यूम 80 गुना बढ़ा है। इसमें भी इस साल हम 10 गुना वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।