न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) एक जटिल मुद्दा है और इसे लागू करने के लिए कई बातों पर विचार करना पड़ेगा। जैसे फाइनेंशियल, प्रशासनिक, न्यायिक, राजनीतिक वगैरह। किसानों की समस्याएं दूर करने के लिए एमएसपी के अलावा दूसरे विकल्पों पर भी विचार करने की जरूरत है। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एंड अवॉर्ड्स 2022 में आयोजित पैनल चर्चा में विशेषज्ञों ने ये विचार व्यक्त किए। 23 दिसंबर को आयोजित इस कॉन्क्लेव में पैनल चर्चा का विषय था- लीगल एमएसपी का औचित्य और आधार तथा इसका तात्पर्य- केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिका।
कृषि मंत्रालय के पूर्व सचिव सिराज हुसैन ने कहा कि एमएसपी के मुद्दे का कोई आसान समाधान नहीं है। लेकिन उन्होंने 2 बिंदुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। पहला, क्या हमारी आयात-निर्यात नीति यह सुनिश्चित कर सकती है कि किसी भी कमोडिटी का आयात करने पर उसकी लैंडेड कीमत एमएसपी से कम नहीं होगी। दूसरा, क्या यह संभव है कि सरकार किसी भी समय कमोडिटी के निर्यात पर रोक ना लगाए।
हुसैन के अनुसार लीगल एमएसपी की मांग का आधार यह है कि किसानों को कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव से बचाया जा सके। इस समस्या के एक हल के तौर पर कीमतों में अंतर के भुगतान के विकल्प पर चर्चा की गई थी, लेकिन यह तभी संभव है जब एपीएमसी मजबूत हो, उनके पास पुख्ता कागजात हो और उनका प्रबंधन अच्छा हो।
एक और जटिलता बताते हुए हुसैन ने कहा कि अगर आप एमएसपी को लीगल बनाते हैं तो विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और ग्लोबल मार्केट से अनेक तरह के सवाल आएंगे। उन्होंने अमेरिका के एक सांसद का उदाहरण दिया जिन्होंने राष्ट्रपति जो बाइडेन को पत्र लिखकर भारत सरकार की तरफ से दी जाने वाली सब्सिडी का विरोध किया है। हुसैन ने कहा कि सिर्फ रणनीतिक वजहों से अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ में हमारे खिलाफ शिकायत नहीं की है। वर्ना कई मामलों में वे भारत के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में जा चुके हैं और वहां जीते भी हैं।
पूर्व कृषि सचिव ने कहा कि एमएसपी का मुद्दा जटिल होने के कारण इस पर विचार के लिए पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है, लेकिन इस बात की संभावना कम ही है कि निकट भविष्य में समिति कोई समाधान लेकर आएगी। एमएसपी को कानूनी दर्जा देने पर जो भी निर्णय हो अथवा समिति की रिपोर्ट में जो भी कहा गया हो, कृषि कमोडिटी की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव रोकने के लिए कोई न कोई फैसला करना पड़ेगा।
कोऑपरेटिव एमएसपी से करीब से जुड़े हैंः संदीप नायक
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (एनपीसी) के डायरेक्टर जनरल संदीप कुमार नायक ने कोऑपरेटिव और एमएसपी के बीच संबंधों के चर्चा की। उन्होंने कहा, हमारे देश के 94 से 95 फ़ीसदी किसान किसी न किसी कोऑपरेटिव के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि उत्पादकता, कर्ज, भंडारण और बाजार से संबंधित सूचनाएं- यह सभी बातें एमएसपी के मुद्दे से सीधे जुड़ी हैं। इन सब में कोऑपरेटिव बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
सभी परिस्थितियों में एमएसपी श्रेष्ठ कीमत नहींः प्रो रमेश चंद
नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद्र ने कहा कि अनेक किसान संगठन एमएसपी को कानूनी तौर पर बाध्यकारी करने की मांग कर रहे हैं। किसान चाहते हैं कि उन्हें उनकी उपज की श्रेष्ठ कीमत मिले। वे कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव से भी खुद को बचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, मेरे विचार से एमएसपी सभी परिस्थितियों में श्रेष्ठ कीमत नहीं हो सकती। यह स्थिरता जरूर ला सकती है, लेकिन श्रेष्ठता नहीं। सबसे अच्छी कीमत तो प्रतिस्पर्धा से ही आएगी। अगर बाजार में प्रतिस्पर्धा होगी तो किसानों को उनकी फसल की सबसे अच्छी कीमत भी मिलेगी।
उन्होंने कहा कि सबसे अधिक ग्रोथ उन सेक्टर में दिख रही है जिनमें कीमतों पर सरकार का हस्तक्षेप कम है। इसके लिए उन्होंने कृषि से संबंधित क्षेत्र डेयरी, फिशरीज और बागवानी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि विशेष परिस्थितियों में एमएसपी की अपनी भूमिका जरूर हो सकती है, लेकिन यह बाजार के उतार-चढ़ाव से निपटने में किसानों की उद्यमिता को भी नष्ट करती है।
एमएसपी को कानूनी तौर पर बाध्यकारी करने की मांग पर उन्होंने कहा कि इसके कई प्रभाव होंगे। ऐसा करने में तीन कीमतों को ध्यान में रखना पड़ेगा। एक है एमएसपी, दूसरा उचित बाजार मूल्य और तीसरा बाजार का वास्तविक मूल्य। उचित बाजार मूल्य एमएसपी से ज्यादा है तब तो एमएसपी को कानूनी दर्जा देने का फायदा होगा, लेकिन अगर उचित बाजार मूल्य एमएसपी से कम है तो एमएसपी को कानूनी दर्जा देने पर बिजनेसमैन बाजार से उपज खरीदने से पीछे हट जाएगा। तब सरकार के लिए राजकोषीय समस्या आएगी।
खाद्य सब्सिडी दोगुनी करनी पड़ेगीः प्रो सीएससी शेखर
इंस्टीट्यूट आफ इकोनामिक ग्रोथ (आईजी) के प्रोफेसर तथा एमएसपी समिति के सदस्य प्रो सीएससी शेखर ने भी कहा कि एमएसपी का मुद्दा काफी जटिल है। उन्होंने कहा कि इसके लिए तीन बातों पर विचार करने की जरूरत है। पहला, क्या यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य है? दूसरा, क्या हमारे पास प्रशासनिक क्षमता है? तीसरा, न्यायिक रूप से यह कितना संभव हो सकेगा? उन्होंने कहा कि उन 2019-20 के उत्पादन के आधार पर आईजी ने कुछ आकलन किए हैं इसमें पांच अनाज, पांच दालें और चार तिलहन को शामिल किया गया है। इस आकलन में पाया गया कि अगर इन 14 फसलों के लिए एमएसपी को कानूनी दर्जा दिया जाता है तो हर साल करीब 3 लाख 40 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसके लिए खाद्य सब्सिडी लगभग दोगुनी करनी पड़ेगी।