किसानों की वास्तव में मदद के लिए जरूरी है कि खेती की लागत कम की जाए और उत्पादकता बढ़ाई जाए। इसमें रिसर्च की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह बात एनएएएस (नास) के चेयरमैन, आईसीएआर के पूर्व डीजी तथा कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के पूर्व सचिव डॉ त्रिलोचन महापात्र ने कही। वे डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस की दूसरी वर्षगांठ पर आयोजित कॉन्क्लेव के एक सत्र में बोल रहे थे। सत्र का विषय था ‘कृषि के विकास और खेती से होने वाली आय बढ़ाने में टेक्नोलॉजी की भूमिका।’
उन्होंने जंगली गेंदा फूल का जिक्र करते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश में इसकी खेती होती है और इससे जो तेल निकलता है वह 12000 से 15000 रुपये लीटर बिकता है। उन्होंने बताया कि जब वह हिमाचल के कांगड़ा और चंबा इलाकों में आधिकारिक दौरे पर थे तब उन्हें जंगली गेंदा की खेती के बारे में पता चला। एक किसान ने बताया कि वह दिल्ली में नौकरी करता था, लेकिन उसे सिर्फ 15000 वेतन मिलता था। इतने कम पैसे में उसके लिए घर चलाना मुश्किल था।
तब उसने नौकरी छोड़ दी और अपने प्रदेश आ गया। यहां उसने सौ-डेढ़ सौ लोगों को साथ लेकर जंगली गेंदा फूल की खेती शुरू की। शुरू में उसने उससे तेल निकाल कर बेचा तो वह 5000 से 6000 रुपए लीटर तक बिका, लेकिन बाद में इसकी कीमत 12000 से 15000 रुपये तक पहुंच गई। यही नहीं, दूसरी फसल उगाने पर किसानों को बंदरों की समस्या का सामना करना पड़ता था लेकिन गेंदा की खेती में उन्हें ऐसी कोई समस्या नहीं आई। ऑफ सीजन में भी किसान 6 महीने में 60000 रुपये की कमाई कर लेते हैं। हालांकि कमाई उनकी जमीन के आकार पर निर्भर करता है।
डॉ. महापात्र ने कहा, कहने का तात्पर्य यह है कि किसानों को खेती में विविधीकरण करने की जरूरत है, क्योंकि पारंपरिक खेती से ज्यादा कमाई नहीं हो सकती है। विविधीकरण से आमदनी तो बढ़ेगी ही रोजगार भी पैदा होता है। उन्होंने कहा कि किसानों को विविधीकरण के लिए प्रेरित करने में केंद्र और राज्य सरकारें मदद कर सकती हैं।
उन्होंने बताया कि आईसीएआर की मदद से कृषि विज्ञान केंद्र किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रहे हैं। बागवानी क्षेत्र ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किसान महंगी सब्जियां उगा रहे हैं जिससे उनकी आमदनी 4 से 5 गुना बढ़ गई है। बागवानी के अलावा डेयरी से भी किसानों को आमदनी बढ़ाने में मदद मिली है।
महापात्र ने अधिक उत्पादकता के लिए तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित गन्ना ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट के प्रयासों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अगर सही टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाए तो लागत कम से कम और उत्पादन अधिक से अधिक किया जा सकता है। उन्होंने बेहतर नतीजों के लिए खेती में क्लस्टर अप्रोच अपनाने की भी बात कही
इस मौके पर एमसीएक्स के चेयरमैन और नाबार्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ हर्ष कुमार भनवाला ने किसानों की मदद के लिए सैटेलाइट के इस्तेमाल पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी की मदद से किसानों को अब बैंक तक जाने की जरूरत नहीं रही। उन्हें ना तो पूरे दिन की दिहाड़ी गंवाने की जरूरत है, न ही आने-जाने और खाने पर अपनी जेब से खर्च करने की जरूरत है। सब कुछ एक माउस क्लिक पर उपलब्ध है।
यूनिफाइड पेमेंट सिस्टम का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि घर बैठे पेमेंट किया जा सकता है या रिसीव किया जा सकता है। लेन-देन में कोई फ्रॉड होने पर उसे देखने के लिए रिजर्व बैंक है, शिकायत करने के लिए लोकपाल है। उन्होंने सुझाव दिया कि स्टार्टअप को किसानों के लिए स्वास्थ्य बीमा का कोई विकल्प तलाशना चाहिए। जरूरत के समय किसानों को हमेशा सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
भानवाला ने कहा कि स्टार्ट अप बिचौलियों को कम कर रहे हैं। हमें उनके साथ सीधे या एफपीओ के माध्यम से जुड़ना चाहिए। इससे हम लागत में कमी ला सकते हैं। कृषि विविधिकरण पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जब मैं देश भर में देखता हूं तो सबसे कम विविधिकरण हरियाणा और आसपास के इलाकों में हुआ है। हमें विविधिकरण की जरूरत है। उन्होंने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि इन राज्यों में संसाधनों की किल्लत के बावजूद विविधिकरण काफी अधिक हुआ है और उसका किसानों को बेहतर आय के रूप में फायदा हुआ है।
डीसीएम श्रीराम लिमिटेड में शुगर बिजनेस के सीईओ और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रोशन लाल टामक ने खेती की बाधाओं को दूर कर उत्पादकता बढ़ाने के उपायों पर बात की। उन्होंने कहा कि स्वस्थ बीज का इस्तेमाल, उन पर ड्रोन टेक्नोलॉजी के जरिए समान रूप से स्प्रे, उचित सिंचाई और फसलों की कटाई में मशीन के प्रयोग कुछ ऐसी बातें हैं जिनका किसानों को प्रयोग करके देखना चाहिए। उन्होंने बताया कि सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए अगर सिंचाई की जाए तो खर्चा बहुत कम हो सकता है।
टामक ने कहा जो लोग उत्पादन में अग्रणी हैं वह एक हैक्टेयर मेंं 2500 क्विंटल गन्ना उत्पादन हासिल कर रहे हैं जबकि और औसत उत्पादकता 750 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय आधार पर उत्पादन में बहुत अंतर है। हमें यह देखना चाहिए कि समान जलवायु और मिट्टी में औसत उत्पादन इतना कम क्यों है। उन्होंने इसकी वजह गिनाते हुए कहा कि पिचले पांच से छह दशक में हमारे पास गन्ने की पांच से छह ही अच्छी किस्में आई। हमें एक साथ कई किस्मों को विकसित करने पर काम करना चाहिए। कामयाब किस्म 0238 को एक सुपर वेरायटी के रूप मेंआगे विकसित करना चाहिए। दूसरे हमे बीज और सामान्य गन्ने के बीच अंतर करना चाहिए। सामान्य गन्ने को बीज के रूप में उपयोग करना एक गलत परंपरा है। ऐसे में हम जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे की कहावत चरितार्थ होती है।
तीसरे गन्ना बोने की विधि बहुत अहम है। ट्रेंच विधि से उत्पादकता 10 से 15 फीसदी बढ़ जाती है। दो लाइनों के बीच की दूरी से पौधे को बेहतर धूप मिलती है और बेहतर हवा, पानी व उर्वरक मिलता है। चौथे फालिएज स्प्रै के जरिये उर्वरक देने से उर्वरक की कार्यशीलता बढ़ती है। समान मात्रा में हर पौधे को उर्वरक मिलना ड्रोन से स्प्रे के जरिये संभव है।
टामक ने कहा कि हमें मशीनों का उपयोग बढ़ाने की जरूरत है। यह आईसीएआर की बड़ी जिम्मेदारी है कि वह फसल के विभिन्न स्तरों पर उपयोग होने वाली मशीनों का विकास करे। वहीं सिंचाई सुविधाओं में सोलर इनर्जी का उपयोग बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि इससे लागत में कमी आती है।
बायोप्राइम एग्री सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड की डायरेक्टर डॉ. रेणुका दीवान ने कहा कि किसानों के मुख्य चिंता खेती से होने वाला मुनाफा है। उन्होंने बताया कि खेती में जितना पैसा इस्तेमाल होता है, उसका 40% बेकार चला जाता है। उपज हासिल करने में सिर्फ 60% रकम का प्रयोग होता है। उन्होंने बताया कि हमारी कोशिश इस नुकसान को शून्य न सही, 10% पर लाने का है। स्वस्थ फसलों को कीटनाशकों और उर्वरकों की जरूरत कम पड़ती है। दूसरी तरफ उनकी पैदावार भी अच्छी होती है। इससे किसानों को बाजार में उनकी उपज की अच्छी कीमत मिल सकती है।
एक्वाकनेक्ट के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और मार्केटिंग प्रमुख मुरूगन चिदंबरम ने बताया कि भारत अब दूसरा बड़ा झींगा निर्यातक बन गया है। उन्होंने बताया हम इस बिजनेस में बिचौलिए की भूमिका निभाते हैं। उन्होंने टेक्नोलॉजी की व्याख्या ‘ए और ए’ के रूप में की। इसमें पहला ए पूर्वजों (एन्सेस्टर) का ज्ञान है। दूसरे ए का मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है। उन्होंने कहा कि मैनुअल तरीकों से मिलने वाली जानकारी को रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट इमेज के साथ मिलाया जाए तो कृषि क्षेत्र को काफी फायदा हो सकता है। उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी की मदद से खेती को टिकाऊ बनाने में मदद मिल सकती है और किसानों का जोखिम भी कम हो सकता है।