फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) उनकी कीमतों में स्थिरता की गारंटी तो दे सकता है, लेकिन एमएसपी यह गारंटी नहीं दे सकता कि किसान को हमेशा उसकी फसल की सर्वश्रेष्ठ कीमत मिलेगी। सर्वश्रेष्ठ कीमत बाजार में प्रतिस्पर्धा से ही मिल सकती है। नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने शुक्रवार को डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस की तरफ से आयोजित एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव में यह बात कही।
अनेक किसान संगठन एमएसपी को कानूनी तौर पर बाध्यकारी करने की मांग कर रहे हैं। प्रो. रमेश चंद ने कहा, किसान चाहते हैं कि उन्हें उनकी उपज की श्रेष्ठ कीमत मिले। वे कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव से भी खुद को बचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, मेरे विचार से एमएसपी सभी परिस्थितियों में श्रेष्ठ कीमत नहीं हो सकती। यह स्थिरता जरूर ला सकती है, लेकिन श्रेष्ठता नहीं। सबसे अच्छी कीमत तो प्रतिस्पर्धा से ही आएगी। अगर बाजार में प्रतिस्पर्धा होगी तो किसानों को उनकी फसल की सबसे अच्छी कीमत भी मिलेगी।
सरकार 22 फसलों के लिए एमएसपी तय करती है। राशन की दुकानों तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए गेहूं और चावल वितरित करने के मकसद से यह गेहूं और चावल की खरीद करती है। तिलहन और दलहन की कुछ मात्रा भी सरकार खरीदती है। सरकार की एमएसपी समिति के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने कहा कि किसानों को एमएसपी पर बहुत अधिक निर्भर नहीं हो जाना चाहिए, उन्हें बाजार में मौजूद अवसरों का भी लाभ उठाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सबसे अधिक ग्रोथ उन सेक्टर में दिख रही है जिनमें कीमतों पर सरकार का हस्तक्षेप कम है। इसके लिए उन्होंने कृषि से संबंधित क्षेत्र डेयरी, फिशरीज और बागवानी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि विशेष परिस्थितियों में एमएसपी की अपनी भूमिका जरूर हो सकती है, लेकिन यह बाजार के उतार-चढ़ाव से निपटने में किसानों की उद्यमिता को भी नष्ट करती है।
एमएसपी को कानूनी तौर पर बाध्यकारी करने की मांग पर उन्होंने कहा कि इसके कई प्रभाव होंगे। ऐसा करने में तीन कीमतों को ध्यान में रखना पड़ेगा। एक है एमएसपी, दूसरा उचित बाजार मूल्य और तीसरा बाजार का वास्तविक मूल्य। उचित बाजार मूल्य एमएसपी से ज्यादा है तब तो एमएसपी को कानूनी दर्जा देने का फायदा होगा, लेकिन अगर उचित बाजार मूल्य एमएसपी से कम है तो एमएसपी को कानूनी दर्जा देने पर बिजनेसमैन बाजार से उपज खरीदने से पीछे हट जाएगा। तब सरकार के लिए राजकोषीय समस्या आएगी।
गौरतलब है कि सरकार ने इस साल जुलाई में एमएसपी पर एक समिति बनाई थी। पिछले साल किसान आंदोलन खत्म करने के लिए जब उसने तीन विवादास्पद कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की थी तब उसने एमएसपी कमेटी बनाने की भी बात कही थी। यह समिति एमएसपी व्यवस्था को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के तरीके पर काम कर रही है। यह एमएसपी की सिफारिश करने वाले कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को अधिक स्वायत्त बनाने के तरीके पर भी विचार कर रही है।