माइक्रोफ्लूडिक सिस्टमः पैदावार बढ़ाने की नई तकनीक का आईआईटी गुवाहाटी में सफल परीक्षण

फसल की पैदावार बढ़ाने के प्रयासों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने मिट्टी जैसी स्थिति बनाने के लिए एक पोर्टेबल और सस्ता माइक्रोफ्लूडिक सिस्टम विकसित किया है। उन्होंने इस सिस्टम का परीक्षण भी किया है, जिसमें पता चला है कि पोषक तत्वों के प्रवाह को बेहतर करने से जड़ों के बढ़ने और नाइट्रोजन अवशोषण में सुधार हो सकता है।

माइक्रोफ्लूडिक सिस्टमः पैदावार बढ़ाने की नई तकनीक का आईआईटी गुवाहाटी में सफल परीक्षण
अपनी टीम के साथ आईआईटी गुवाहाटी के प्रो. प्रणब कुमार मंडल।

फसल की पैदावार बढ़ाने के प्रयासों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने मिट्टी जैसी स्थिति बनाने के लिए एक पोर्टेबल और सस्ता माइक्रोफ्लूडिक सिस्टम विकसित किया है। उन्होंने इस सिस्टम का परीक्षण भी किया है, जिसमें पता चला है कि पोषक तत्वों के प्रवाह को बेहतर करने से जड़ों के बढ़ने और नाइट्रोजन अवशोषण में सुधार हो सकता है। 

आईआईटी गुवाहाटी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर और स्कूल ऑफ एग्रो एंड रूरल टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फैकल्टी प्रो. प्रणब कुमार मंडल तथा उनकी टीम ने माइक्रोफ्लूडिक्स का उपयोग करते हुए यह जानकारी हासिल की, कि बीज से निकलने वाली प्राथमिक जड़ मिट्टी से पोषक तत्वों को कैसे अवशोषित करती है। जड़ के व्यवहार का विश्लेषण करने में माइक्रोफ्लूडिक तकनीक के उनके नए उपयोग से पोषक तत्वों की डिलीवरी और जड़ों के विकास को सुधारा जा सकता है। इस तकनीक में फसल प्रबंधन में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ कृषि पैदावार को बढ़ावा देने की क्षमता है।

उनके शोध कार्य में भारत सरकार के विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी/एएनआरएफ) ने मदद की है। टीम के शोध के निष्कर्षों को रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री की पत्रिका ‘लैबॉन ए चिप’ में प्रकाशित किया गया है। कौशल अग्रवाल और डॉ. सुमित कुमार मेहता इस शोध के सह-लेखक हैं। इस शोध कार्य को पत्रिका के आगामी अंक के कवर आर्ट के रूप में प्रस्तुत करने के लिए भी स्वीकार किया गया है।

माइक्रोफ्लूडिक्स क्या है?

माइक्रोफ्लुइडिक्स, माइक्रोमीटर आकार की संरचनाओं में द्रव के प्रवाह का अध्ययन है। इसने छोटे स्केल पर फ्लूइड डायनामिक्स के सटीक नियंत्रण और कैरेक्टराइजेशन के जरिए कोशिका अध्ययन के अनुसंधान में क्रांति ला दी है। 

मौजूदा माइक्रो-डिवाइस मुख्य रूप से रूट-बैक्टीरिया इंटरैक्शन, हार्मोनल सिग्नलिंग और पॉलेन ट्यूब ग्रोथ जैसी घटनाओं पर फोकस करते हैं। इसमें वास्तविक समय में पौधे की जड़ की गतिशीलता में सीमित अध्ययन ही हो पाता है। विशेष रूप से, जड़ के विकास और तिग्मो मॉर्फोजेनेसिस (मैकेनिकल स्ट्रेस के प्रति पौधों की प्रतिक्रिया) पर पोषक तत्वों के प्रवाह से मैकेनिकल स्टिमुलस के प्रभाव का व्यापक अध्ययन नहीं किया गया है।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, प्रो. मंडल और उनकी टीम ने अधिक उपज देने वाली सरसों की किस्म, पूसा जय किसान की जांच की। यह माइक्रोमीटर रेंज में प्रभावी जड़ विकास के लिए जानी जाती है। उनका लक्ष्य यह समझना था कि विभिन्न पोषक तत्वों का प्रवाह अंकुरण के बाद के चरणों के दौरान जड़ की वृद्धि और नाइट्रोजन अवशोषण को कैसे प्रभावित करता है।

अपने शोध के मुख्य बिंदुओं को समझाते हुए प्रो. मंडल ने कहा, “हमारा अध्ययन माइक्रोफ्लूडिक उपकरणों के माध्यम से पौधों की जड़ के डायनेमिक्स में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। हमने पोषक तत्वों के प्रवाह का अनुकरण करके, नाइट्रोजन अवशोषण को मापकर और जड़ कोशिकाओं पर पोषक तत्वों के अवशोषण का विश्लेषण करके अपने निष्कर्षों को अंतिम रूप दिया। यह शोध हमारी इस समझ को बढ़ाता है कि मैकेनिकल स्टिमुलस और पोषक तत्वों का अवशोषण कैसे परस्पर क्रिया करते हैं। इसका कृषि के लिए व्यावहारिक उपयोग है।”

शोधकर्ताओं ने पाया कि पोषक तत्वों के प्रवाह की दर बढ़ाने से जड़ की लंबाई और नाइट्रोजन अवशोषण अधिकतम स्तर तक पहुंच गया। इस बिंदु से आगे पोषक तत्वों के प्रवाह से जड़ की लंबाई कम होने लगी। प्रयोग के दौरान यह भी देखने को मिला कि पोषक तत्वों के प्रवाह के संपर्क में आने वाली जड़ें बेहतर नाइट्रोजन अवशोषण के कारण बिना पोषक प्रवाह वाली जड़ों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती हैं।

यह शोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि सावधानीपूर्वक किया गया पोषक प्रवाह जड़ में महत्वपूर्ण रूपात्मक परिवर्तन लाता है, जिससे पौधे की वृद्धि तेज होती है। अंकुरित बीज की प्राथमिक जड़ पौधे को थामने का कार्य करती है, जो पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इस जड़ को शुरुआती विकास के दौरान मिट्टी की विभिन्न स्थितियों से निपटना पड़ता है, जो पौधे के जीवित रहने के लिए एक महत्वपूर्ण चरण है।

पोषक तत्वों की आपूर्ति, पीएच स्तर, मिट्टी की संरचना, वातन (एरेशन) और तापमान जैसे कारक जड़ के विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। पारंपरिक प्रयोग की सीमाओं के कारण जड़ की गतिशीलता का अध्ययन करना चुनौतीपूर्ण रहा है। इसके लिए अक्सर बड़े कंटेनर और जटिल हैंडलिंग की आवश्यकता होती है।

अपने शोध के अगले चरण में आईआईटी गुवाहाटी की टीम जड़ की वृद्धि में पोषक प्रवाह-प्रेरित परिवर्तनों में मॉलिक्यूलर मैकेनिज्म का पता लगाने की योजना बना रही है। उनका मानना है कि इन सेलुलर और मॉलिक्यूलर प्रक्रियाओं को समझने से अधिक रेजिलिएंट हाइड्रोपोनिक सिस्टम का विकास हो सकता है। इससे भविष्य में मिट्टी रहित फसल उत्पादन में मदद मिल सकती है।

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